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अनुभूति में पुष्पेन्द्र शरण पुष्प की रचनाएँ-

गीतों में-
अर्थ लगाकर
आज हवाओं का
जबसे मैंने होश संभाला
जीवन में
बहके कदमों से जंगल में

जबसे मैंने होश संभाला

जबसे मैंने होश संभाला है।
तब से दु:ख दर्दों को पाला है।

खुशियाँ बड़े बाप की होती हैं।
महलों में मखमल पर सोती हैं।
सारा ही संताप यहाँ रहता,
ये घर झोंपड़पट्टी वाला है।

बाल उमरिया पड़ी बढ़कपन में।
इसे प्रौढ़ता मिली लड़कपन में।
जीवन जीने का सारा बोझा,
बचपन के कंधों पर डाला है।

यही सोचता रहा खिले गुलशन।
साथ हमेशा लगी रही उलझन।
बुन-बुन के में फंसता चला गया,
ये जीवन मकड़ी का जाला है।

जितने रिश्ते नाते दुनिया में।
सबको नाप लिया है गुनिया में।
नहीं किसी का हुआ यहाँ कोई,
भइया सबका ऊपर वाला है।

डूब गया जब गहरे और तले।
तब जाकर ये मोती हाथ लगे।
तप-तप के मैं पकता चला गया,
सोने को भट्टी में डाला है।

जबसे मैंने होश संभाला है।
तब से दु:ख दर्दों को पाला है।

१६ नवंबर २००५

 

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