अनुभूति में
पुष्पेन्द्र शरण पुष्प की रचनाएँ-
गीतों में-
अर्थ लगाकर
आज हवाओं का
जबसे मैंने होश संभाला
जीवन में
बहके कदमों से जंगल में
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बहके कदमों से
जंगल में
बहके कदमों
से
जंगल में खुद को ना भटकाओ।
मानवता की ख़ातिर जीने
की राहों पर आओ।
हिंसा के दलदल
ने तुमको कैसे जकड़ लिया है।
छोड़ी मां की ममता मैला आंचल
पकड़ लिया है।
राखी के बंधन की ख़ातिर
ही तुम घर आ जाओ।
आँसू सूख गए
आँखों में थोड़ा नीर नहीं है।
तुम्हें पड़े बीमार पिताजी की भी
पीर नहीं है।
रिश्तों को भी फाँसी के फंदों
पर ना लटकाओ।
क्या पाया क्या खोया
तुमने तुमको रीझ नहीं है।
इस दुनिया में भाई जैसी कोई
चीज़ नहीं है।
प्रेम के धागे को पल भर में
ऐसे ना चटकाओ।
सजनी का सिंदूर
तुम्हारा जीवन सींच रहा है।
घोर प्रतीक्षा में बैठा दिल तुमको
खींच रहा है।
बांधे कफ़न मौत का ये
दरवाज़ा ना खटकाओ।
आतंकी बन करके
निज जीवन अभिशाप किया है।
निर्दोषों की जानें लेकर कितना पाप
किया है।
डालो हथियारों को जल्दी
पश्चाताप मनाओ।
बहके कदमों से
जंगल में खुद को ना भटकाओ।
मानवता की ख़ातिर जीने
की राहों पर आओ।
१६
नवंबर २००५
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