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अनुभूति में पुष्पेन्द्र शरण पुष्प की रचनाएँ-

गीतों में-
अर्थ लगाकर
आज हवाओं का
जबसे मैंने होश संभाला
जीवन में
बहके कदमों से जंगल में

आज हवाओं का

आज हवाओं
देखो कैसा रुख है।
छप्पर को पश्चिम की आँधी का
दुख है।

इस काली
आँधी में जब उड़ जाएँगे।
ना जाने फिर कहाँ किधर मुड़ जाएँगे।
घास फूस से बँधी जेबरी
टूट गई,
बिखरे तिनके फिर कैसे जुड़ पाएँगे।
मन रोता है बहुत-बहुत तन का
सुख है।

झोंपड़ कब
तक अपना फूस बचाएगी।
आँधी तो आँधी है आग लगाएगी।
पक्की मीनारों के
शीशे टूटेंगे।
रूप भयंकर जब अपना दिखलाएगी,
चिंता की है बात हृदय में
धुक-धुक है।

इन खेतों में
आज बहुत हरियाली है।
पुरवैया करती इनकी रखवाली है।
खड़ी फसल कस सत्यानाश नहीं
कर दे,
ब्यार भयंकर आज बहुत मदवाली है।
ये संकट तो पौधे के भी
सम्मुख है।

१६ नवंबर २००५

 

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