अनुभूति में
डॉ. प्राची
की रचनाएँ—
गीतों में—
अरी जिंदगी
चलो अब अलविदा कह दें
जश्न-सा तुझको मनाऊँ
पूछता है प्रश्न
माही मुझे चुरा ले मुझसे |
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पूछता है
प्रश्न
पूछता है प्रश्नसहचारित्व मेरा-
क्यों सदा घुलता रहे
अस्तित्व मेरा ?
गर्व था जिन लब्धियों पर, सोच पर
सब नकारीं मूँछ तुमने ऐंठ कर,
फूल सा कोमल हृदय बिंधता रहा
‘मैं’ घुसा दिल में तुम्हारे पैंठ कर
यह सजा है स्त्रीत्व की या कर्मफल है
जो तिरोहित हर घड़ी अहमित्व मेरा?
पूछता है प्रश्न
सब सहेजीं पूर्वजों की थातियाँ
किरचनें टूटे दिलों की जोड़कर
पंख औ’ पग बाँध बेड़ी जड़ किये
देहरी में मुस्कराहट ओढ़कर
नींव के पत्थर सरीखी ज़िंदगी पर
क्यों घरौंदा रेत का, स्थायित्व मेरा?
पूछता है प्रश्न
सप्तरंगी स्वप्न थे भावों पगे-
पर तुम्हे लगते रहे सब व्यर्थ हैं
रौंद कर कुचले गए हर स्वप्न के
चीखते अब सन्निहित अभ्यर्थ हैं
नित अहंकृत-पौरुषी ठगती तुला पर
क्यों भला तुलता रहे व्यक्तित्व मेरा?
पूछता है प्रश्न
१ मई २०२२ |