अनुभूति में
डॉ. प्राची
की रचनाएँ—
गीतों में—
अरी जिंदगी
चलो अब अलविदा कह दें
जश्न-सा तुझको मनाऊँ
पूछता है प्रश्न
माही मुझे चुरा ले मुझसे |
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चलो अब अलविदा कह दें
मुझे कुछ और करना है, तुम्हें कुछ और पाना है
मुझे इस ओर जाना है, तुम्हें उस ओर जाना है
कि अब मुमकिन नहीं लगता
कभी इक ठौर बैठें हम
हमें मंजिल बुलाती है
चलो अब अलविदा कह दें
जहाँ संबोधनों के अर्थ भावों को न छू पाएँ
वहाँ सपने कहो कैसे सहेजें और मुस्काएँ?
चलो उस राह चलते हैं जहाँ हों अर्थ बातों में
स्वरों में प्राण हो जिसके मुझे वो गीत गाना है
बहुत मुश्किल हुआ मन में
घुटन को घोल कर हँसना
घुटन जब-तब रुलाती है
चलो अब अलविदा कह दें
मुझे मालूम है मुश्किल बहुत है दूर हो पाना
मगर कुछ आदतों का अब ज़रूरी है बदल जाना,
तुम्हें मेरी ज़रुरत है! न मुझसे झूठ कहना तुम
मुझे खुद हार कर तुमसे तुम्ही को तो जिताना है
न यूँ अनजान बन कर
और खींचें डोर रिश्तों की
कि डोरी टूट जाती है
चलो अब अलविदा कह दें
तुम्हें क्या याद है जब तुम धड़कता मौन पढ़ते थे
बहुत से बन्ध उलझन के सुलझते थे उधड़ते थे,
मगर खामोशियाँ अब क्यों सुलगती हैं सिसकती हैं
मुझे इस प्रश्न का उत्तर ज़रा खुद को बताना है
न चौंको तुम न कुछ बोलो
सरकती साँस की ये लय
सभी सच-सच बताती है
चलो अब अलविदा कह दें
न मैं अब राह देखूँगी, न अब मुझको बुलाना तुम
न रूठूँगी कभी तुमसे, न अब मुझको मनाना तुम
मुझे हर बार बहलाकर यहीं तुम रोक लेते हो
मगर अब खोल दो बंधन मुझे अब दूर जाना है
हमें उन्मुक्त उड़ना है
न बाँधें इन उड़ानों को
सुबह हमको जगाती है
चलो अब अलविदा कह दें
१ मई २०२२ |