अनुभूति में
डॉ. प्राची
की रचनाएँ—
गीतों में—
अरी जिंदगी
चलो अब अलविदा कह दें
जश्न-सा तुझको मनाऊँ
पूछता है प्रश्न
माही मुझे चुरा ले मुझसे |
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अरी ज़िंदगी
नटी बनी थिरका करती है जब-तब डगर-मगर
अरी ज़िंदगी ले जाएगी मुझको बता किधर
क्यों ओढ़ी तूने सतरंगी सपनों की चूनर
सपने पूरे करने की जब राहें हैं दुष्कर
माना मीठी मुस्कानें पलकों तक लाते हैं
पर कर्कश ही होते हैं बिखरे सपनों के स्वर
तिनका-तिनका ढह जाता है नीड़ हमेशा, फिर
बुनती है क्यों वहीं घरौंदा, चंचल जिधर लहर
छलकी आँखों को पलकों के बीच दबाती है
सिसकी के तन पर उत्सव का लेप चढ़ाती है
शब्द कहेंगे झूठ मगर खामोशी कह देगी
बाहर क्या दिखता है, भीतर किसे छुपाती है
झंझावातों से गहरा क्या नाता है तेरा
थमी-थमी लहरों पर फेंका करती है कंकर
धूप-छाँव के तूने कितने पन्ने हैं खोले
कितने राज़ बताए कितने बाक़ी अनबोले
दूर अगर जाऊँ तो क्यों राहों में बिछती है
मगर पकड़ती हूँ तो झट से बैरी क्यों हो ले
लुका-छुपी गम और खुशी की कब तक खेलेगी
मेरे सब प्रश्नों के आख़िर, कब देगी उत्तर
क्या खोया है तेरा जिसको ढूँढा करती है
ठिठकी धड़कन से आखिर क्यों आँहें भरती है
पग-पग पर आरोपित हैं जाने कितने बंधन
सच कहना क्या तू भी हर बंधन से डरती है
कभी बलैयों सी मीठी तो कभी कटारी है
भला ज़िंदगी! तुझे छुएगी किसकी बुरी नज़र
१ मई २०२२ |