अनुभूति में
डॉ. प्राची
की रचनाएँ—
गीतों में—
अरी जिंदगी
चलो अब अलविदा कह दें
जश्न-सा तुझको मनाऊँ
पूछता है प्रश्न
माही मुझे चुरा ले मुझसे |
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जश्न-सा तुझको मनाऊँ
गुनगुनी-सी आहटों पर
खोल कर मन के झरोखे
रेशमी कुछ सिलवटों पर सो रहे सपने जगाऊँ
इक सुबह ऐसी खिले जब जश्न-सा
तुझको मनाऊँ
साँझ की दीवानगी से कुछ महकते पल चुराकर
गुनगुनाती इक सुबह की जेब में रख दूँ छिपाकर
थाम कर जाते पलों का हाथ लिख दूँ इक कहानी
उस कहानी में लिखूँ बस नाम तेरा सब मिटाकर
हर छुपे एहसास को फिर
रंग में तेरे भिगो कर
काश ऐसा हो कभी मैं साथ
अपना गुनगुनाऊँ
मौन का संदल छिड़कती साँस थोड़ी चुलबुली हो
नेह के अनुवाद में हर ओट जैसे अधखुली हो
ले सुनहरा इत्र चारों ओर फैले रौशनी फिर
हर छुअन में गीत हो संगीत हो लय सी घुली हो
एक दूजे को सुनें
सुनते रहें बस मुस्कुराकर
मन कहे जो बात, वो हर बात मैं
तुझको बताऊँ
कुछ पलों की रौशनी से ज़िंदगी में अर्थ भरकर
चल पड़ूँ संतृप्ति का सागर लिए पूरा निखर कर
मंत्र बन गूँजे हमेशा तू हृदय की वादियों में
और मैं अलमस्त झूमूँ राह में जब-तब ठहर कर
मंदिरों की चौखटों से
खोल गिरहें चाहना की
मन्नतों की पूर्णता पर दीप नत
हो कर जलाऊँ
१ मई २०२२ |