अनुभूति में
ओम
निश्चल
की रचनाएँ-
गीतों में-
गुनगुनी धूप है
छुआ मुझे तुमने रूमाल की तरह
जब हवा सीटियाँ बजाती है
नदी
का छोर
यह वेला शाम की
लिख रहे हैं लोग कविताएँ
संबंधों की अलगनियों पर
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संबंधों की
अलगनियों पर
किसिम किसिम के
संबोधन के महज दिखावे हैं
संबंधों की अलगनियों पर सबके दावे हैं
दुर्घटना की आशंकाएँ
जैसे जहाँ-तहाँ
कुशल-क्षेम की तहकी़कातें
होती रोज़ यहाँ
अपनेपन की गंध तनिक हो
इनमें मुमकिन है
पर ये रटे-रटाए जुमले महज छलावे हैं
घर दफ्तर हर जगह
दीखते बाँहें फैलाए
होठों पर मुस्कानें ओढ़े
भीड़ों के साए
हँसते-बतियाते हैं यों तो
लोग बहुत खुल कर
मुँह पर ठकुर-सुहाती भीतर जलते लावे हैं
निहित स्वार्थों वाली जेबें
सभी ढाँपते हैं
ग़ैरों की मजबूरी का सुख
लोग बाँटते हैं
दुआ-बंदगी, हँसी-ठहाके
हुए औपचारिक
आईनों के पुल तारीफी महज भुलावे हैं
९ जनवरी
२०१२ |