अनुभूति में
मरुधर
मृदुल की रचनाएँ-
गीतों में-
जब यह होगा, गीत लिखूँगा।
डर
धरती की बाँहें
मन में जाने
हम |
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धरती
की बाँहें
पेड़ नहीं हैं, उठी हुई
धरती की बाहें हैं।
तेरे–मेरे लिए माँगती
रोज़ दुआएँ हैं।
पेड़ नहीं हैं, ये धरती की
खुली निगाहें हैं,
तेरे–मेरे लिए निरापद
करती राहें हैं।
पेड़ नहीं हैं पनपी धरती
गाहे गाहे हैं
तेरे मेरे जी लेने की
विविध विधाएँ हैं।
पेड़ नहीं हैं ये धरती ने
यत्न जुटाए हैं
तेरे मेरे लिए अनेकों
रत्न लुटाए हैं।
पेड़ नहीं हैं ये धरती ने
चित्र बनाए हैं
तेरे मेरे जाने कितने
मित्र जुटाए हैं।
पेड़ नहीं हैं ये धरती ने
चंवर ढुलाए हैं
तेरे मेरे लिये छांह के
गगन छवाए हैं
पेड़ नहीं हैं ये धरती ने
सगुन सजाए हैं
तेरे मेरे लिये ढूंढ के
जतन जताए हैं।
पेड़ नहीं हैं ये धरती ने
अलख जगाए हैं
तेरे मेरे लिये अनेकों
द्वार सजाए हैं।
पेड़ नहीं हैं अस्तित्वों के
बीज बिजाए हैं
तेरे मेरे जीने के
विश्राम जुड़ाए हैं।
१५ अप्रैल २००२ |