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नहीं मरेगा गीत
अपने उर में थामे बैठा
नयी-पुरानी रीत,
कितना भी झुठलाओ भैया
नहीं मरेगा गीत !
गीत कि जिसमें
होती लय है,
जीवन जीना
और अभय है.
बन्धन को भी झंकृत करता
करे सभी से प्रीत !
नया-पुराना, रोना-गाना,
कभी रूठना, कभी मनाना.
लेकिन सुर से पूजित तन-मन
जीवन का संगीत !
कभी वेद की रही ऋचा है
कभी पूर्ण है, कभी बचा है.
लेकिन सबसें रचा-बसा है
सुख का, दुःख का मीत !
कितना भी झुठलाओ भैया
नहीं मरेगा गीत !
१७ दिसंबर २०१२ |