आ गई धूप
बिना कहे
चुपचाप आ गयी
ड्रॉइंग रूम में धूप !
रंग सुनहरा, पतली काया
और गुनगुना रूप !
ठिुठुरे-ठिठुरे हाथ-पैर हैं
साँसें भी ठण्डी,
तेज़ हवा के झौंके मचलें
कोहरे की मण्डी.
अंग-अंग में
सिहरन सरसे
नदी किनारे कूप ! बिना कहे
चुपचाप आ गयी
ड्रॉइंग रूम में धूप !
नन्ही गौरैया भी फुदके
फुनगी पर पेड़ों के,
डरकर पीले खेत हो गये
बदले रंग मेड़ों के.
थर-थर काँपे
सरसों-गेहूँ
बना बाजरा भूप !
बिना कहे
चुपचाप आ गयी
ड्रॉइंग रूम में धूप !
रोज़ तमकना
गुस्सा खाना भी, काफूर हुआ,
जल्दी घर को लौट पड़े
ज्यों घर भी दूर हुआ.
कैसे फटके
किरनें अम्मा ?
घर का टूटा सूप !
बिना कहे
चुपचाप आ गयी
ड्रॉइंग रूम में धूप !
१७ दिसंबर २०१२ |