|
मन की मौज में
उमर पखेरू, उड़ा जा रहा
अपने मन की मौज में,
और हाथ पर हाथ, धरे हम
बैठे गहरी सोच में !
खुद को आज भुला बैठे हैं
अपने मन की ना सुनते,
जोड़ रखे हैं, कंचे-पत्थर
सच के हीरे ना चुनते.
हर पल, घबराहट में जीते
या दुनिया के खौफ में !
घर के दालानों में देखो
सजा रखे हैं गुलदस्ते,
कमरों में आशा के परदे
जेबों में खर्चों के रस्ते.
कैसे सुख की कार, खड़ी हो
अपने घर के पोर्च में ?
आशीषों को, घर से बाहर करके
क्या सुख पाएँगे ?
जो बोते हैं, इस जीवन में
मित्र वही घर लाएँगे.
फिर भी रमुआ, लगा हुआ है
सच्चे सुख की खोज में !
१७ दिसंबर २०१२ |