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कौन सुनेगा ?
किसको फुरसत
कौन सुनेगा
कथा-व्यथा छप्पर की ?
सूरज है अलमस्त
बोलता
मस्ती भरी अवाज़
बादल भी आवारा-सा
नित
खोल रहा है राज़.
भोर उनींदी
थका हौसला
गौरैया पर-घर की !
चूल्हा ठण्डा, द्वार अटपटा
माटी नहीं पोतनी,
खिड़की दरवाजे़ है बेबस
अनमन हुई, अरगनी.
टूटा छपपर
रिसता पानी
दहरी भी दरकी !
बूढ़ा बाप, खाँसता द्वारे
भीतर अम्मा लेटी,
फटे वसन, लज्जा तन ढाँके
हुई सयानी बेटी.
खाली बैठा
सरजू, बागी
बात कहे, हर-घर की !
१७ दिसंबर २०१२ |