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अनुभूति में कुमार शैलेन्द्र की रचनाएँ-

गीतों में-
ढँको न सिंदूरी मिट्टी से
द्वन्द्व सिरहाने खड़ा
पाप ग्रहों से नज़र
पाल बाँधना छोड़ दिया
बारूदी फ़सलों से
बेरहम है वक्त
वर्षगाँठ पर सोन चिरैया

 

 

वर्षगाँठ पर सोनचिरैया

ढीले हो जाएँगे बन्धन
गाँठ मगर कस जाएगी,
वर्षगाँठ पर सोनचिरैया
क्या-क्या बोल सुनाएगी।।

जलसे हमने जलकर देखे
जल काजल में बदल गया,
जाल सँभाले मछुवारा मन
मत्स्यगंध पर फिसल गया,

आगामी सन्तति पुरखों की-
थाती ही खो जाएगी।।

पुष्पक में बैठे हैं हम सब
इन्द्रलोक में जाना है,

अग्निपरीक्षा का भय केवल
कंचन ही निखराना है,

ऊँची-ऊँची सभी उड़ानें-
नीचे ही रह जाएँगी।।

टूटी-बिखरी संज्ञाओं को
आओ क्रियापदों से जोड़ें,
संस्कार की सुप्तभूमि में
बीज विशेषण वाले छोड़ें,

वरना, व्यथा भारती माँ की-
कोरी ही रह जाएगी।

३० जून २००८

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