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अनुभूति में कुमार शैलेन्द्र की रचनाएँ-

गीतों में-
ढँको न सिंदूरी मिट्टी से
द्वन्द्व सिरहाने खड़ा
पाप ग्रहों से नज़र
पाल बाँधना छोड़ दिया
बारूदी फ़सलों से
बेरहम है वक्त
वर्षगाँठ पर सोन चिरैया

 

 

बारूदी फ़सलों से...

गीतों की गन्ध
कौन हवा उड़ा ले गई,
बारूदी फ़सलों से-
खेत लहलहा गए।
अनजाने बादल,

मुँडेरों पर छा गए।।

मर्यादा लक्ष्मण की
हम सबने तोड़ दी,
सोने के हिरनों से
गाँठ नई जोड़ दी,

रावण के मायावी,
दृश्य हमें भा गए।।

स्मृति की गलियों में,
कड़वाहट आई है,
बर्फ़ीली घाटी की
झील बौखलाई है,

विष के संवादों के
परचम लहरा गए।।

बुलबुल के गाँव धूप
दबे पाँव आती है,
बरसों से वर्दी में
ठिठुर दुबक जाती है,

अन्तस के पार तक
चिनार डबडबा गए।।

टेसू की छाती पर
संगीनें आवारा,
पर्वत के मस्तक पर
लोहित है फव्वारा,

राजकुँवर सपनों में
हिचकोले खा गए।।

३० जून २००८

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