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अनुभूति में कुमार शैलेन्द्र की रचनाएँ-

गीतों में-
ढँको न सिंदूरी मिट्टी से
द्वन्द्व सिरहाने खड़ा
पाप ग्रहों से नज़र
पाल बाँधना छोड़ दिया
बारूदी फ़सलों से
बेरहम है वक्त
वर्षगाँठ पर सोन चिरैया

 

 

ढँको न सिन्दूरी मिट्टी से

नंगे पाँव भले चंगे हैं, नागफनी की पीर को।
दिन के सपने तोड़ न पाते, सोने की जंजीर को।।

सूँघ गया है साँप
केवड़े की मदमाती गंध को,
नई टहनियाँ भूल गयी है
माटी की सौगन्ध को,

हवा हादसों को गरियाती, पुरखों की जागीर को।।

द्वार,  देहरी,  आँगन, घर
नित नये-नये विस्फोट हैं,
मृत अतीत में झाँक रही अब
'अलगू'  की हर चोट है,

घुसा ताजगी में बासीपन, नीबू-रस ज्यों क्षीर को।।

शंकर का विषपान
राम के गौरवमय सोपान-सा,
गौतम का हर बोध-स्थल,
बस अपने हिन्दुस्तान-सा,

ढँको न सिन्दूरी मिट्टी से,  तुलसी,  नानक,  मीर को।।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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