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अनुभूति में गुलाब सिंह  की रचनाएँ—

गीतों में—
अपने ही साए
गीतों का होना
दिन
पेड़ और छाया
फूल पर बैठा हुआ भँवरा

शहरों से गाँव गए
हतप्रभ हैं शब्द

 

 

 

शहरों से गाँव गए
 
शहरों से गाँव गए
गाँव से शहर आए
कागज के गुलदस्ते
चिड़ियों के पर लाए

खुशबू तो है नहीं
उड़ान भी नहीं
रंगों की धरती
आकाश है कहीं
छाँह में चमकते हैं
धूप लगे कुम्हलाए

बढ़ करके दूर गए
गए बहुत ऊँचे
रिश्तों की धार
बूंद -बूंद तक उलीचे
जीने की प्यास बेंच
मरने के डर लाए

एक लहर उठी
और एक नाव डूबी
आँख बचा गैरत
ऊँची छत से कूदी
मेले में जुड़े जो
अकेले वापस आए

३१ अक्तूबर २०११

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