अनुभूति में
गुलाब सिंह
की
रचनाएँ—
गीतों में—
अपने ही साए
गीतों का होना
दिन
पेड़ और छाया
फूल पर बैठा हुआ भँवरा
शहरों से
गाँव गए
हतप्रभ हैं शब्द
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गीतों का
होना
गीत न होंगे
क्या गाओगे ?
हँस-हँस
रोते
रो-रो गाते
आँसू-हँसी
राग-ध्वनि-रंजित
हर पल को
संगीत बनाते
लय-विहीन
हो गए अगर
तो कैसे फिर
सम पर आओगे
तन में
कण्ठ
कण्ठ में स्वर है
स्वर शब्दों की
तरल धार ले
देह नदी
हर साँस लहर है
धारा को अनुकूल
किए बिन
दिशाहीन बहते जाओगे
स्वर
अनुभावन
भाव विभावन
ऋतु वैभव
विन्यास पाठ विधि
रचनाओं के
फागुन-सावन
मुक्त-प्रबंध
काव्य कौशल से
धवल नवल
रचते जाओगे
३१ अक्तूबर २०११
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