अनुभूति में
गुलाब सिंह
की
रचनाएँ—
गीतों में—
अपने ही साए
गीतों का होना
दिन
पेड़ और छाया
फूल पर बैठा हुआ भँवरा
शहरों से
गाँव गए
हतप्रभ हैं शब्द
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दिन
फूलों भरी हरी धरती से
झुककर कुछ कहते हैं दिन
कच्चा रेशम धूप हो गई
नदी दूध की धोई
रात चाँदनी झोपड़ियों के
गले लिपटकर रोई
पगडंडी के सूनेपन को
सुबह शाम सहते हैं दिन
सरसों के पीले पृष्ठों पर
हवा गीत गोविंद लिखे
रहकर मौन दर्द दोहराते
शीश झुकाएँ गाँव दिखे
बजते हैं बाँसुरी सरीखे
आँसू से बहते हैं दिन
सूखे अधर प्यास पथराई
नयन उरेहें सपने
पानी पत्थर बीच प्यार के
अँखुए लगे पनपने
शाकुन्तल सतसईं खोलकर
मोरपंख रखते हैं दिन
३१ अक्तूबर २०११
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