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अनुभूति में गिरिजा कुलश्रेष्ठ की रचनाएँ-

गीतों में-
आधार
कुछ ठहर ले और मेरी जिंदगी
जरा ठहरो
तुम ही जानो
बसंत का गीत

 

तुम ही जानो

इस आकुल अंतर की बातें
मैं जानूँ तुम भी जानो
निर्जन में कितनी बरसातें
मैं जानूँ तुम भी जानो

जाने कब कैसे हमने यह
डोरी किरणों से बाँधी
अब तक आँखें हो ना सकीं जो
गहन अँधेरे की आदी
कैसे आहत करती रातें
मैं जानूँ तुम भी जानो

मैं दुनिया से अनजानी
दुनिया मुझसे अनजानी है
छलनामय व्यापारों में
दिल की बातें बेमानी है
चुपके कब हो जाती बातें
मैं जानूँ तुम भी जानूँ

जीर्ण वसन हैं अब भाषा के
क्या पहना दूँ भावों को
सुलभ नहीं, सुरभित अमराई
अब तो मन के गाँवों को
दुर्लभ है सच्ची सौगातें
मैं जानूँ तुम भी जानो

१ जुलाई २०२२

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