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अनुभूति में भवेश चंद जायसवाल की रचनाएँ-

गीतों में-
ओ मीत
कागज की नाव
मत दो साथी
मौसम भी लगते हैं
हँसता है कौन

 

मत दो साथी

मत दो साथी
उल्लासों का क्षणिक प्रलोभन
मेरा मन अब
सब कुछ सहने का आदी है।

चंदन बन कर
पीड़ाओं ने मुझे सँवारा
कठिन विषमताओं ने
मेरा साथ दिया है
नश्वर फूलों का
विश्वास करूँ क्या साथी?
जीवन भर काँटों ने
मुझे सनाथ किया है

चाह नहीं नन्दन वन के
कुसुमित वैभव की-
मेरे मन का मीत
सृजन का गीत
विजन के उजड़े कुंजों में ही
रहने का आदी है।

रक्षा का वरदान
भला क्यों माँगू साथी?
सुख मिलता है जब
घायल होकर जीने में
कंटकमय उन मुस्कानों की
चाह नहीं अब
होता है संतोष मुझे
आँसू पीने में

मत दो तुम आवास
मुझे निर्भय कूलों का-
मेरा नव उल्लास
मधुरतम हास
प्रलय के उठते ज्वारों में ही
बहने का आदी है।

रहने दो
मत छीनो घूँघट की मर्यादा
साथी दृढ़ बन्धन के
बोल मुझे भाते हैं
भग्न आस्थाओं को मेरी
मत सहलाओ
इनमें मेरे सौ-सौ गीत
जनम पाते हैं

मत दो तुम वरदान
मुझे विस्तृत भाषा का-
मेरा मधु-सन्ताप
सुखद अभिशाप
कि सीमित शब्दों में ही सब कुछ
कहने का आदी है।

१५ सितंबर २०१६

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