अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में भवेश चंद जायसवाल की रचनाएँ-

गीतों में-
ओ मीत
कागज की नाव
मत दो साथी
मौसम भी लगते हैं
हँसता है कौन

 

कागज की नाव

नदी-नदी तैर रही
कागज की नाव।

वन-पर्वत-घाटी
भूले परिपाटी
मेघों का भाव
तौल रही माटी

अनदेखे मन के अब
उभर रहे घाव।

मूल्यों के विघटन
धुंध, धुआँ, बादल
थकी-थकी आँखों से
बहता है काजल

चिंतन बिन चिंता से
उलझ गये भाव।

टूट गईं सीमाएँ
दूभर है जीना
फटी हुई चादर औ'
नित्य उसे सीना

सूरज ने दिखा दिया
धरती को ताव।

१५ सितंबर २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter