अनुभूति में
भारतेंदु मिश्र
की रचनाएँ-
नए गीतों में-
अंधा दर्पन
गीत होंगे
मौत का कुआँ
रामधनी
की माई
हमको सब
सहना है
दोहों में-
सरिता के कूल
गीतों में-
कितनी बार
गयाप्रसाद
बाजार घर में
बाजीगर मौसम
बाँसुरी की देह दरकी
देखता हूँ इस शहर को
नवगीत के अक्षर
मदारी की लड़की
रोज नया चेहरा
वाल्मीकि व्याकुल
है
समय काटना है
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मौत का
कुआँ
दर्द को पकाता है,
बाँसुरी बजाता है
बस हसीन सपने को वो गले
लगाता है।
मेला है दो दिन का
फिर होंगे फाके
तीनों बच्चे उसके
हैं बड़े लड़ाके
चोट जब उन्हें लगती खूब
मुस्कुराता है।
जाने कब टूट जाए
साँसों की डोरी
दुनिया का मेला
है उसकी मजबूरी
कभी कभी गिरता है कभी
लड़खडाता है।
गोल गोल घूम रहा
बेबस मन मारे
पूरा ही कुनबा है
उसी के सहारे
मौत के कुँए में वो साइकल
चलाता है।
४ नवंबर २०१३
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