बाँसुरी की देह दरकी
बाँसुरी की देह दरकी
और उसकी फाँस पर
जो फिर रही थी
एक अँगुली चिर गई हैं!
रक्तरंजित हो रहे है
मुट्ठियों के सब गुलाब
एक तीखी रोशनी में
बुझ गए रंगीन ख़्वाब
कहीं नंगे बादलों में
किरन बाला घिर गई है!
गूँज भरते शंख जैसे
खोखले वीरान गुंबद
थरथराते आग में
इस गाँव के बेजान बरगद
न जाने विश्वास की मीनार
कैसे गिर गई है!
७ जनवरी २००८