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अनुभूति में भारतेंदु मिश्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
अंधा दर्पन
गीत होंगे

मौत का कुआँ
रामधनी की माई
हमको सब सहना है

दोहों में-
सरिता के कूल

गीतों में-
कितनी बार
गयाप्रसाद
बाजार घर में
बाजीगर मौसम
बाँसुरी की देह दरकी
देखता हूँ इस शहर को
नवगीत के अक्षर
मदारी की लड़की
रोज नया चेहरा
वाल्मीकि व्याकुल है
समय काटना है

 

बाजार घर में

आ गया बाजार घर में
या कि घर बाजार में है।

धर्म बिकता कर्म बिकता
न्याय भी बिकने लगा है
शक्ल खोकर आदमी अब
वस्तु सा दिखने लगा है
मिल रहा सबकुछ यहीं पर
जो कहीं संसार में है।

वस्तुएँ लादे हुए
वे द्वार तक आने लगी हैं
नग्न हो विज्ञापनों में
देह दिखलाने लगी हैं
गाँव की वह शोख लडकी
अब इसी व्यापार में हैं।

यह अनूठा गाँव जिसमें
ढल गयी दुनिया हमारी
बेचना बिकना यहाँ
नवसभ्यता अब है हमारी
दुधमुहाँ भी दूरदर्शन की
निकटतम मार में है।

३ मई २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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