अनुभूति में
भारतेंदु मिश्र
की रचनाएँ-
नए गीतों में-
अंधा दर्पन
गीत होंगे
मौत का कुआँ
रामधनी
की माई
हमको सब
सहना है
दोहों में-
सरिता के कूल
गीतों में-
कितनी बार
गयाप्रसाद
बाजार घर में
बाजीगर मौसम
बाँसुरी की देह दरकी
देखता हूँ इस शहर को
नवगीत के अक्षर
मदारी की लड़की
रोज नया चेहरा
वाल्मीकि व्याकुल
है
समय काटना है
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गीत होंगे
हम न होंगे गीत होंगे
क्योंकि ये हमसे बड़े हैं
ये समय की सीढियों पर
रत्न- मणियों से जड़े हैं।
ये नदी हैं ,ये हिमालय
ये समंदर की लहर हैं
ये सुबह हैं-शाम हैं ये
रात दिन ये दोपहर हैं
मृत्यु से भी हर कदम पर
शक्ति भर अपनी लड़े हैं।
सूर्य की किरणों सरीखे
ये हवा के विमल झोंके
आग हैं ये -बाढ़ हैं ये
शब्द रथ को कौन रोके
ये स्वयंभू बरगदों की भाँति
धरती में गड़े हैं।
इन्द्रधनुषी मेघ हैं ये
छन्दमय आकाश हैं ये
ये समर के शंख अनहद
ये सृजन हैं-नाश हैं ये
वेद हैं ये –नीति हैं ये
कर्म बनकर ये खड़े हैं।
कोकिला हैं हंस हैं ये
मोर हैं ये बुलबुले हैं
कहीं तीखे कहीं मीठे
कंठ में सबके घुले हैं
ये अजन्ता की गुफाएँ
ये सुधा रस के घड़े हैं।
४ नवंबर २०१३
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