अनुभूति में
आभा सक्सेना की
रचनाएँ- अंजुमन में-
आदमी को आदमी के
छपी वहाँ पर
पंछी हम भी टेर बुलाते
पोंछ दे आँसू
रात आँगन में
संकलन में-
सूरज-
आसमान में अंकित सूरज
होली है-
फाग
गीत गाएँ
रंग जमना चाहिये
बाँसों को झुरमुट-
बाँसों के झुरमुट में
बेला के फूल-
बागों में बेला खिला
फूल शिरीष के-
खिल रहा उन पर शिरीष
शुभ दीपावली-
रौशनी नेह की है
रक्षाबंधन-
तेरी याद सताती है
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रात आँगन में
मेरे बारे में ये कौन कह कर आया था
आँख में नूर खुदा का ही उतर आया था
आयी हूँ मैं अभी महफ़िल में नज़्म कहने को
तुम भी क्या याद करोगे कि हुनर आया था
आइना टूट गया अक्स भी बिखरे हैं कई
चाँद सा चेहरा मेरे दिल में उतर आया था
तू गया छोड़ के जब बीच सड़क में मुझको
तू तो बिछड़ा है बता कैसा सफ़र आया था
मंजिलें मिलतीं नहीं दूर ठिकाना मेरा
बीच रस्ते में यहाँ कैसा कहर आया था
मुझको मालूम है वो इस शहर में है लेकिन
वो तेरे घर में ही कल रात नज़र आया था
मेरे आँगन में खिली चाँदनी भी सुन्दर है
रात आँगन में मेरे चाँद उतर आया था
१ अक्तूबर २०१६ |