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खिल रहा उन पर शिरीष
 

गाँव की पग डंडियाँ हैं
खिल रहा उन पर शिरीष

ध्यान से देखो इन्हें तुम
मौन हैं पर हैं नहीं गुम
बात करने को हैं आकुल
चाह करती कोई व्याकुल

आज सब से झूम कर ज्यों
मिल रहा खुल कर शिरीष

खुशनुमा से फूल जिस पर
रंग की बहुता है उस पर
भर गयी है महक चहुँ दिश
है मगन भी आज कुछ निस

बादलों की क्यों प्रतीक्षा
तृप्त है फल कर शिरीष

है बहुत दिलकश नज़ारा
देख कर अम्बर भी हारा
हैं गुलाबी फूल इसके
देख कर छाया भी ठसके

हैं जड़ें गहराइयों में
मुग्ध है ढल कर शिरीष

- आभा सक्सेना

१५ जून २०
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