अनुभूति में आभा
खरे की
रचनाएँ- गीतों में-
अवसादों का अफसाना
उन्मादी भँवरा डोल रहा
कुछ मनन करो
जीतना मुश्किल नहीं
धार के विपरीत बहना
मन बाँध रहा संबन्ध नया
माहिया में-
मन की जो डोर कसी
संकलन में-
दीपावली-
चाँद अँधेरों का
शिरीष-
महके फूल शिरीष के
चाय-
अदरक वाली चाय
पतंग-
चुलबुली पतंग
ममतामयी-
माँ तुझे प्रणाम
जलेबी-
रस भरी जलेबी
होली है-
इंद्रधनुषी रंग
कनेर-
फूलों की चमक
पिता के लिये-
पिता
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मन की जो डोर कसी
मन की जो डोर कसी
ऐसी लगन लगी
छवि उसकी नैन बसी
ओ सपनो के राही
चन्दा से डर क्या
तू छत पे आ माही
सपनों के गाँव गली
लेकर निंदिया को
पलको की नाव चली
सुन ले ओ मूढ़ मना
कण-कण झर जाता
तन माटी का गहना
जग दो दिन का खेला
साँस चले , चलता
सुख दुख का ये मेला
आँखें हैं मधुशाला
घूँट-घूँट पी लूँ
छलके मद का प्याला ..!!
मेरा दिल बेसबरा
तुझमें यूँ डूबा
जो अब तक ना उबरा..!!
रिमझिम यादें बरसी
भीग रहीं अँखियाँ
बिन सावन ये कैसी ...!!
है कितनी बेदर्दी
सब बातें दिल की
इन नैनों ने कह दी ...!!
सुख के गुल ये कहते
जीवन बगिया में
दुख काँटे भी चुभते..!!! १ नवंबर २०१९ |