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माँ तुझे प्रणाम

 

 

 
शक्ति का हर स्वरुप
माँ का है रूप
युगों युगों से ही
सदानीरायें भी
कहलाती हैं माँ..!
जब-जब हुई
चर्चा शक्ति की
उभर आई तस्वीर
सामने स्त्री की
और मन की आँखों से
जब देखो तो
हर स्त्री रूप में
झलकती है माँ..!

शक्ति रूपा माँ
समस्त सृष्टि की जननी
जब-जब पुरुष ने
आदर और सम्मान
भाव को भूल
स्त्री को भोग्या समझा
तब-तब शक्ति रूपा
बनी संहारिणी है माँ..!

एक शक्ति स्वरूपा
बसती है हमारे घर में
बनकर हमारी माँ
प्रेम और ममता की मूरत
बिना कहे समझ जाती है
हमारी भूख और जरूरत
सुख-दुःख सब जान लेती
रहती परेशानियों से अवगत
जीवन के कठिन दौर में
दोस्त बन साथ निभाती है माँ..!
माँ तुझे प्रणाम!

- आभा खरे
१५ अक्तूबर २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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