अनुभूति में आभा
खरे की
रचनाएँ- गीतों में-
अवसादों का अफसाना
उन्मादी भँवरा डोल रहा
कुछ मनन करो
जीतना मुश्किल नहीं
धार के विपरीत बहना
मन बाँध रहा संबन्ध नया
माहिया में-
मन की जो डोर कसी
संकलन में-
दीपावली-
चाँद अँधेरों का
शिरीष-
महके फूल शिरीष के
चाय-
अदरक वाली चाय
पतंग-
चुलबुली पतंग
ममतामयी-
माँ तुझे प्रणाम
जलेबी-
रस भरी जलेबी
होली है-
इंद्रधनुषी रंग
कनेर-
फूलों की चमक
पिता के लिये-
पिता
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धार के
विपरीत बहना
बात मुश्किल है मगर सोचो जरा समझो
वक्त ये कैसा खड़ा सर पर
सवाली बन
कब तलक बेचारगी बुनते रहोगे तुम
बेसबब संदर्भ पर कुढ़ते रहोगे तुम
कल गँवाया, आज भी खोते रहोगे तुम
गढ़ सको तो अर्थ जीवन के नये गढ़ लो
है मुनासिब अब नहीं बहको
मवाली बन...
दम न हो गर शब्द में, हर बात बेदम है
जो न कौतुक रच सके, समझो असर कम है
बज रहा थोथे चने सा बस यही गम है
भीड़ शब्दों की जुटा कर क्या भला हासिल ?
पाल सारे भ्रम रहे तुम
खुश-खयाली बन
कर्म बिन हर इक किला बनता हवाई है
फिर सहारा माँग कर क्यों मात खायी है ?
हार मानी बिन लड़े ही उफ दुहाई है
धार के विपरीत गर तुम सीख लो बहना
मुश्किलों में जी सकोगे
फिर धमाली बन
१ नवंबर २०२२ |