अनुभूति में आभा
खरे की
रचनाएँ- गीतों में-
अवसादों का अफसाना
उन्मादी भँवरा डोल रहा
कुछ मनन करो
जीतना मुश्किल नहीं
धार के विपरीत बहना
मन बाँध रहा संबन्ध नया
माहिया में-
मन की जो डोर कसी
संकलन में-
दीपावली-
चाँद अँधेरों का
शिरीष-
महके फूल शिरीष के
चाय-
अदरक वाली चाय
पतंग-
चुलबुली पतंग
ममतामयी-
माँ तुझे प्रणाम
जलेबी-
रस भरी जलेबी
होली है-
इंद्रधनुषी रंग
कनेर-
फूलों की चमक
पिता के लिये-
पिता
|
|
अवसादों
का अफसाना
दूर-दूर तक नीम न पीपल, छाया वीराना
भूल गए लय ताल खुशी की
बे-सुर है गाना
चौराहों पर दुनिया सारी
लगे सिमट आयी
शोर, प्रदूषण, सर ही सर बस
दिखते हैं भाई
कैसी आपाधापी है
जो होती रोजाना
रेस लगी है, दौड़ बड़ी है
भागम-भाग मची
कदम मिला, बाजारवाद से
सुबहो-शाम कटी
क्या है मंजिल, कहाँ पहुँचना
रहता अनजाना
सपनों जैसे अब पंछी के
मधुरिम गान हुए
फ्लैटों में गुम छत, आँगन या
फिर दालान हुए
अवसादों ने याद दिलाया
भूला अफसाना
१ नवंबर २०२२ |