अनुभूति में
त्रिलोचन की रचनाएँ-
गीतों में-
कोइलिया न बोली
परिचय की वो गाँठ
शब्दों से कभी-कभी काम नहीं चलता
हंस के समान दिन
सॉनेट में-
दुनिया का सपना
वही त्रिलोचन है
सॉनेट का पथ
कविताओं में-
चंपा काले काले अच्छर नहीं
चीन्हती
जनपद का कवि
नगई महरा
भीख माँगते उसी त्रिलोचन को देखा
अंजुमन में-
बिस्तरा है न चारपाई है
हमको भी बहुत कुछ याद था
संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास-बैठ
धूप में
गुच्छे भर अमलतास-दोपहरी
थी जेठ की
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सॉनेट का पथ
इधर त्रिलोचन सॉनेट के ही पथ पर दौड़ा;
सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट; क्या कर डाला
यह उस ने भी अजब तमाशा। मन की माला
गले डाल ली। इस सॉनेट का रस्ता चौड़ा
अधिक नहीं है, कसे कसाए भाव अनूठे
ऐसे आएँ जैसे क़िला आगरा में जो
नग है, दिखलाता है पूरे ताजमहल को;
गेय रहे, एकान्विति हो। उस ने तो झूठे
ठाटबाट बाँधे हैं। चीज़ किराए की है।
स्पेंसर, सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन की वाणी
वर्ड्सवर्थ, कीट्स की अनवरत प्रिय कल्याणी
स्वर-धारा है, उस ने नई चीज़ क्या दी है।
सॉनेट से मज़ाक़ भी उसने खूब किया है,
जहाँ तहाँ कुछ रंग व्यंग्य का छिड़क दिया है।
16 दिसंबर
2007
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