अनुभूति में
त्रिलोचन की रचनाएँ-
गीतों में-
कोइलिया न बोली
परिचय की वो गाँठ
शब्दों से कभी-कभी काम नहीं चलता
हंस के समान दिन
सॉनेट में-
दुनिया का सपना
वही त्रिलोचन है
सॉनेट का पथ
कविताओं में-
चंपा काले काले अच्छर नहीं
चीन्हती
जनपद का कवि
नगई महरा
भीख माँगते उसी त्रिलोचन को देखा
अंजुमन में-
बिस्तरा है न चारपाई है
हमको भी बहुत कुछ याद था
संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास-बैठ
धूप में
गुच्छे भर अमलतास-दोपहरी
थी जेठ की
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जनपद का कवि
उस जनपद का कवि हूँ जो भूखा दूखा है, नंगा है,
अनजान है, कला–नहीं जानता कैसी होती है क्या है,
वह नहीं मानता कविता कुछ भी दे सकती है।
कब सूखा है उसके जीवन का सोता,
इतिहास ही बता सकता है।
वह उदासीन बिलकुल अपने से, अपने समाज से है;
दुनिया को सपने से अलग नहीं मानता,
उसे कुछ भी नहीं पता दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँची,
अब समाज में वे विचार रह गए नही हैं
जिन को ढोता चला जा रहा है वह,
अपने आँसू बोता विफल मनोरथ होने पर
अथवा अकाज में।
धरम कमाता है वह तुलसीकृत रामायण सुन पढ़ कर,
जपता है नारायण नारायण।
16 दिसंबर 2007
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