अनुभूति में
त्रिलोचन की रचनाएँ-
गीतों में-
कोइलिया न बोली
परिचय की वो गाँठ
शब्दों से कभी-कभी काम नहीं चलता
हंस के समान दिन
सॉनेट में-
दुनिया का सपना
वही त्रिलोचन है
सॉनेट का पथ
कविताओं में-
चंपा काले काले अच्छर नहीं
चीन्हती
जनपद का कवि
नगई महरा
भीख माँगते उसी त्रिलोचन को देखा
अंजुमन में-
बिस्तरा है न चारपाई है
हमको भी बहुत कुछ याद था
संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास-बैठ
धूप में
गुच्छे भर अमलतास-दोपहरी
थी जेठ की
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दुनिया का सपना
तुम, जो मुझ से दूर, कहीं हो, सोच रहा हूँ,
और सोचना ही यह, जीवन है इस पल का,
अब जो कुछ है, वह कल के प्याले से छलका,
गतप्राय है। किसी लहर में मौन बहा हूँ,
अपना बस क्या। जीवन है दुनिया का सपना,
जब तक आँखों में है तब तक ज्योति बना है।
अलग हुआ तो आँसू है या तिमिर घना है।
बने ठीकरा तो भी मिट्टी को है तपना।
कल छू दी जो धूल आज वह फूल हो गई,
चमत्कार जिन हाथों में चुपचाप बसा है,
ऐसा हो ही जाता है। यह सत्य कसा है
सोना, जिस पर जमे मैल की पर्त खो गई।
पथ का वह रजकण हूँ जिस पर छाप पगों की
यहाँ वहाँ है; मूक कहानी सहज डगों की।
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