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अनुभूति में त्रिलोचन की रचनाएँ-

गीतों में-
कोइलिया न बोली

परिचय की वो गाँठ
शब्दों से कभी-कभी काम नहीं चलता
हंस के समान दिन

सॉनेट में-
दुनिया का सपना
वही त्रिलोचन है
सॉनेट का पथ

कविताओं में-
चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
जनपद का कवि
नगई महरा

भीख माँगते उसी त्रिलोचन को देखा

अंजुमन में-
बिस्तरा है न चारपाई है

हमको भी बहुत कुछ याद था

संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास-बैठ धूप मे
गुच्छे भर अमलतास-दोपहरी थी जेठ की

 

शब्दों से कभी-कभी काम नहीं चलता

शब्दों से
कभी-कभी काम नहीं चलता

जीवन को देखा है
यहाँ कुछ और
वहाँ कुछ और
इसी तरह यहाँ-वहाँ
हरदम कुछ और
कोई एक ढंग सदा काम नहीं करता

शब्दों से
कभी-कभी काम नहीं चलता

तुम को भी चाहूँ तो
छूकर तरंग
पकड़ रखूँ संग
कितने दिन कहाँ-कहाँ
रख लूँगा रंग
अपना भी मनचाहा रूप नहीं बनता।

शब्दों से
कभी-कभी काम नहीं चलता

16 दिसंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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