बिस्तरा
है न चारपाई है बिस्तरा है न चारपाई है,
ज़िंदगी खूब हमने पाई है।
कल अंधेरे में जिसने सर काटा,
नाम मत लो हमारा भाई है।
ठोकरें दर-ब-दर की थी हम थे,
कम नहीं हमने मुँह की खाई है।
कब तलक तीर वे नहीं छूते,
अब इसी बात पर लड़ाई है।
आदमी जी रहा है मरने को
सबसे ऊपर यही सचाई है।
कच्चे ही हो अभी त्रिलोचन तुम
धुन कहाँ वह सँभल के आई है।
16 दिसंबर 2007
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