अनुभूति में
शील की रचनाएँ-
कविताओं में--
निराला
फिरंगी चले गए
बैल
मेघ न आए
राह हारी मैं न हारा
संध्या के बादल
हल की मूठ गहो
संकलन में--
मेरा भारत-आदमी
का गीत
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सन्ध्या के
बादल... सन्ध्या के बादल,
लहरा रहे गाँव के बाहर
गोरज के आँचल।
सन्ध्या के बादल।
कंचन-कलश धरे अमराई,
नभ-उन्मद, ले सूर्य विदाई,
अस्ताचल की भूख, आग का
गोला रही निगल।
सन्ध्या के बादल।
सन्ध्या के बादल,
लहरा रहे गाँव के बाहर--
गोरज के आँचल।
सन्ध्या के बादल।
शीत पवन सुरमई दिशाएँ,
मुँदे कमल, सर-घन उतराएँ,
निशा आँजती, उदयाचल की--
आँखों में काजल।
सन्ध्या के बादल।
सन्ध्या के बादल,
लहरा रहे गाँव के बाहर
गोरज के आँचल।
सन्ध्या के बादल।
१० अगस्त २००९ |