अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शील की रचनाएँ-

कविताओं में--
निराला
फिरंगी चले गए
बैल
मेघ न आए
राह हारी मैं न हारा
संध्या के बादल
हल की मूठ गहो

संकलन में--
मेरा भारत-आदमी का गीत

  फिरंगी चले गए

करती है दिन को रात सियासत सुदेश की,
बोकर कलह के बीज, फिरंगी चले गए।

भ्रम की भँवर थी, ख़ुश थे, अहिंसा से जय मिली,
दुश्मन बने अजीज़, फिरंगी चले गए।

आते हैं शील ज़लज़ले, ईमान की क़सम,
राहें हुईं ग़लीज़, फिरंगी चले गए।

रहबर ही कर रहे हैं यहाँ, राहज़न के काम,
माँगे मिली तमीज़, फिरंगी चले गए।

हम यौमे-स्वतंत्रता को फ़क़त देखते रहे,
लग़ज़िश लगी लज़ीज़, फिरंगी चले गए।

१० अगस्त २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter