अनुभूति में
शील की रचनाएँ-
कविताओं में--
निराला
फिरंगी चले गए
बैल
मेघ न आए
राह हारी मैं न हारा
संध्या के बादल
हल की मूठ गहो
संकलन में--
मेरा भारत-आदमी
का गीत
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राह हारी मैं न
हारा राह हारी मैं न
हारा!
थक गए पथ धूल के-
उड़ते हुए रज-कण घनेरे।
पर न अब तक मिट सके हैं,
वायु में पदचिह्न मेरे।
जो प्रकृति के जन्म ही से ले चुके गति का सहारा!
राह हारी मैं न हारा!
स्वप्न मग्ना रात्रि सोई,
दिवस संध्या के किनारे
थक गए वन-विहग, मृगतरु-
थके सूरज-चाँद-तारे।
पर न अब तक थका मेरे लक्ष्य का ध्रुव ध्येय तारा।
राह हारी मैं न हारा!
१० अगस्त २००९ |