अनुभूति में
शील की रचनाएँ-
कविताओं में--
निराला
फिरंगी चले गए
बैल
मेघ न आए
राह हारी मैं न हारा
संध्या के बादल
हल की मूठ गहो
संकलन में--
मेरा भारत-आदमी
का गीत
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बैल
तक-तक तक-तक बैल।
हुई ठीक दुपहर है प्यारे,
मृग-मरीचिका चली किनारे।
खेत पड़ा है पैर पसारे,
ओ मौके के मीत हमारे।
तुम पर बड़ा भरोसा मुझको,
माँ ने पाला-पोसा तुमको।
मेहनत के दिन यार न झिझको,
हिम्मत मत हारो मत ठिठको।
तय कर ली है हमने-तुमने, सात हराई गैल।
तक-तक तक-तक बैल।।
आती होगी घर की रानी,
लिए तुम्हें चोकर की सानी।
मुझको लपसी-ठंडा पानी,
पगी प्रेम में ठगी बिकानी।
फर-फर उड़ती चूनर काली,
आती होगी बनी मराली।
रंजे नयन अधरों में लाली,
अंग-अंग में भरे वहाली।
मृदु मुस्कान चपल चितवन से ठगती छलिया छैल।
तक-तक तक-तक बैल।।
देखो आंतर करो न साथी,
विचक-विचक पग धरो न साथी।
मेरे साथी जग के साथी,
मन के साधी घन के साथी।
बीघा डेढ़ हो गया इनका,
पूरा काम हो गया उनका।
मुझको रोटी तुमको तिनका,
है आधार यही जीवन का।
चलो पेट भर लें चल करके दुखिया बैल टुटैल।
तक-तक तक-तक बैल।।
१० अगस्त २००९
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