अनुभूति में
शील की रचनाएँ-
कविताओं में--
निराला
फिरंगी चले गए
बैल
मेघ न आए
राह हारी मैं न हारा
संध्या के बादल
हल की मूठ गहो
संकलन में--
मेरा भारत-आदमी
का गीत
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मेघ न आए
मेघ न आए।
सूखे खेत किसानिन सूखे,
सूखे ताल-तलैयाँ,
भुइयाँ पर की कुइयाँ सूखी,
तलफ़े ढोर-चिरैयाँ।
आसमान में सूरज धधके,
दुर्दिन झाँक रहे।
बीज फोड़कर निकले अंकुर
ऊपर ताक रहे।
मेघ न आए।
सावन बीता, भादों बीते,
प्यासे घट रीते के रीते,
मारी गई फसल बरखा बिन,
महँगे हुए पिरीते।
धन के लोभी दाँत निकाले,
सपने गाँठ रहे।
बीज फोड़कर निकले अंकुर
ऊपर ताक रहे।
मेघ न आए।
आये भी तो धुपहे बादल,
धूल-भरे चितकबरे बादल,
पछुवा के हुलकाए बादल,
राजनीति पर छाए बादल,
पूर्वोत्तर के पचन झकोरे,
धरती माप रहे।
बीज फोड़कर निकले अंकुर
ऊपर ताक रहे।
मेघ न आए।
१० अगस्त २००९ |