अनुभूति में
शमशेर बहादुर सिंह
की रचनाएँ
अजुमन में-
क्यों बाकी है
राह तो एक थी
कविताओं में-
गीली मुलायम लटें
चाँद से बातें
चुका भी हूँ मैं नहीं
दूब
धूप कोठरी के आईने में
प्रेम
सूर्योदय
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चाँद से बातें
(एक
दस ग्यारह साल की लड़की की बात)
गोल हैं ख़ूब मगर
आप तिरछे नज़र आते हैं ज़रा ।
आप पहने हुए हैं कुल आकाश
तारों-जड़ा;
सिर्फ़ मुंह खोले हुए हैं अपना
गोरा-चिट्टा
गोल-मटोल,
अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्त ।
आप कुछ तिरछे नज़र आते हैं जाने
कैसे
ख़ूब हैं गोकि!
वाह जी वाह!
हमको बुद्धू ही निरा समझा है!
हम समझते ही नहीं जैसे कि
आपको बीमारी है :
आप घटते हैं तो घटते ही चले जाते हैं,
और बढ़ते हैं तो बस यानी कि
बढ़ते ही चले जाते हैं-
दम न लेते हैं जब तक बिलकुल ही
गोल न हो जाएं,
बिलकुल गोल ।
यह मरज आपका अच्छा ही नहीं होने में...
24 जून 2007 |