अनुभूति में
गोपाल दास नीरज की
रचनाएँ-
दोहों में-
नीरज के दोहे
गीतों में-
कारवाँ गुज़र गया
खग उड़ते रहना जीवन भर
छिप छिप अश्रु बहाने वालों
धरा को उठाओ
नीरज गा रहा है
बसंत की रात
मुझको याद किया जाएगा
लेकिन मन आज़ाद नहीं है
साँसों के मुसाफ़िर संकलन में-
ज्योति पर्व-जलाओ
दिये
दिये जलाओ-तुम दीवाली बन कर
अंजुमन में-
दूर से दूर तलक
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दूर से दूर तलक
दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था
तुम्हारे घर का सफर इस कदर तो सख्त न था
इतने मसरूफ थे हम जाने की तैयारी में
खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था
मैं जिसकी खोज में खुद खो गया था मेले में
कहीं वो मेरा ही अहसास तो कम्बख्त ना था
जो जुल्म सह के भी चुप रह गया ना खौला था
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था
उन्हीं फकीरों ने इतिहास बनाया है यहां
जिन पे इतिहास को लिखने के लिये वक्त न था
शराब कर के पिया उसने जहर जीवन भर
हमारे शहर में नीरज सा कोई मस्त न था
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