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अनुभूति में गोपाल दास नीरज की रचनाएँ-

दोहों में-
नीरज के दोहे

गीतों में-
कारवाँ गुज़र गया
खग उड़ते रहना जीवन भर
छिप छिप अश्रु बहाने वालों
धरा को उठाओ
नीरज गा रहा है
मुझको याद किया जाएगा
लेकिन मन आज़ाद नहीं है
साँसों के मुसाफ़िर

संकलन में-
ज्योति पर्व-जलाओ दिये
दिये जलाओ-तुम दीवाली बन कर

अंजुमन में-
दूर से दूर तलक

  दोहे

वाणी के सौन्दर्य का शब्दरूप है काव्य
किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।

जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान
उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान।

जब तक पर्दा खुदी का कैसे हो दीदार
पहले खुद को मार फिर हो उसका दीदार।

जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र
माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र।

कैंची लेकर हाथ में वाणी में विष घोल
पूछ रहे हैं फूल से वो सुगंध का मोल।

दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ
उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात।

मिटे राष्ट्र कोई नहीं हो कर के धनहीन
मिटता जिसका विश्व में गौरव होता क्षीण।

इंद्रधनुष के रंग-सा जग का रंग अनूप
बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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