पनिहारिन
अतलसोत अतल कूप आठ बाँस गहरा
मन पर है राजा के प्यादे का पहरा
कच्चाघट शीश धरे पनिहारिन आई
कते हुए धागे की जेवरी बनाई
घट भर कर चली, धूप रूप से लजाती
हंसपदी चली हंस किंकणी बजाती
मन ही मन गाती वह जीवन का
दुखड़ा
भरा हृदय भरे नयन कुम्हलाया मुखड़ा
घट-सा ही भरा भरा जी है दुख
दूना
लिपा पुता घर आँगन प्रियतम बिन सूना
काठ की घड़ौंची पर ज्यों ही घट
धरती
देवों की प्यास ऋक्ष देश से उतरती
साँझ हुई आले पर दीप शिखा नाची
बार-बार पढ़ी हुई पाती फिर बाँची
घुमड़ रहे भाव और उमड़ रहा मानस
गहराई और पास दूर दूर मावस
जहाँ गई अश्रुसिक्त दृष्टि
तिमिर गहरा
हा हताश प्राणों पर देवों का पहरा
अतलसोत अतल कूप आठ बांस गहरा
मन पर है राजा के प्यादे का पहरा |