घिरा गगन
मुदित मगन
मन मयूर नाचे!
ग्राम नगर सभी डगर
बूँदों की टपर-टपर
चपला की जगर मगर
रात्रि पत्र बाँचे!
पवन हुई मदिर-मदिर
वन पल्लव पुष्प रुचिर
जुगनू के बाल मिहिर
भरते कुलांचे!
हरित चुनर श्यामल तन
वर्षा ऋतु चितरंजन
इंद्रधनुष का कंगन
सतरंगा साजे!
दूर हुई कठिन अगन
धरती की बुझी तपन
कोकिल-शुक-पिक-खंजन
बोल कहें साँचे
बारिश की यह सरगम
पानी की यह छम-छम
सावन का यह मौसम
साल भर विराजे
-पूर्णिमा वर्मन
19 अगस्त 2005
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