अनुभूति में
नागार्जुन की रचनाएँ-
गीतों में-
उनको प्रणाम
कालिदास सच सच बतलाना
जान भर रहे हैं जंगल में
पीपल के पत्तों पर
छंदमुक्त में-
बरफ़
पड़ी है
अग्निबीज
बातें
भोजपुर
गुलाबी चूड़ियाँ
सत्य
दोहों में-
नागार्जुन के दोहे
संकलन में-
वर्षा मंगल-
बादल को घिरते देखा है
गाँव में अलाव-
बरफ़ पड़ी है
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गुलाबी चूड़ियाँ
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो
क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से ऊपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूडियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला : हाँ सा'ब
लाख कहता हूँ, नहीं मानती है मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूडियाँ
किस जुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र से उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-सादे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गई सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यों ही पूछ लिया आपसे
वर्ना ये किसको नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!
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