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अनुभूति में नागार्जुन की रचनाएँ-

गीतों में-
उनको प्रणाम
कालिदास सच सच बतलाना
जान भर रहे हैं जंगल मे
पीपल के पत्तों पर

छंदमुक्त में-
बरफ़ पड़ी है
अग्निबीज
बातें
भोजपुर
गुलाबी चूड़ियाँ
सत्य

दोहों में-
नागार्जुन के दोहे

संकलन में-
वर्षा मंगल- बादल को घिरते देखा है
गाँव में अलाव- बरफ़ पड़ी है

 

  भोजपुर

यहीं धुआँ मैं ढूँढ़ रहा था
यही आग मैं खोज रहा थाऊ
यही गंध थी मुझे चाहिए
बारूदी छर्रें की खुशबू!
ठहरो-ठहरो इन नथनों में इसको भर लूँ
बारूदी छर्रें की खुशबू!
भोजपुरी माटी सोंधी हैं,
इसका यह अद्भुत सोंधापन!
लहरा उठ्ठी
कदम-कदम पर, इस माटी पर
महामुक्ति की अग्नि-गंध
ठहरो-ठहरो इन नथनों में इसको भर लूँ
अपना जनम स-कारथ कर लूँ!

मुन्ना, मुझको
पटना-दिल्ली मत जाने दो
भूमिपुत्र के संग्रामी तेवर लिखने दो
पुलिस दमन का स्वाद मुझे भी तो चखने दो
मुन्ना, मुझे पास आने दो
पटना-दिल्ली मत जाने दो

यहाँ अहिंसा की समाधि है
यहाँ कब्र है पार्लमेंट की
भगतसिंह ने नया-नया अवतार लिया है
अरे यहीं पर
अरे यहीं पर
जन्म ले रहे
आज़ाद चन्द्रशेखर भैया भी
यहीं कहीं वैकुंठ शुक्ल हैं
यहीं कहीं बाधा जतीन हैं
यहाँ अहिंसा की समाधि है

एक-एक सिर सूँघ चुका हूँ
एक-एक दिल छूकर देखा
इन सबमें तो वही आग है, ऊर्जा वो ही
चमत्कार है इस माटी में
इस माटी का तिलक लगाओ,
बुद्धू इसकी करो वंदना
यही अमृत है, यही चंदना
बुद्धू इसकी करो वंदना

यही तुम्हारी वाणी का कल्याण करेगी
यही मृत्तिका जन-कवि में अब प्राण भरेगी
चमत्कार है इस माटी में
आओ, आओ, आओ, आओ!
तुम भी आओ, तुम भी आओ
देखो, जनकवि, भाग न जाओ
तुम्हें कसम है इस माटी की
इस माटी की/ इस माटी की/ इस माटी की

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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