अनुभूति में
मुकुट बिहारी
'सरोज' की
रचनाएँ-
गीतों में-
एक ओर पर्दों के नाटक
प्रभुता के घर जन्मे
भीड़-भाड़ में चलना क्या
मुझ में क्या आकर्षण
मेरी कुछ आदत खराब है
रात भर पानी बरसता
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रात भर पानी बरसता
रात भर पानी बरसता और सारे दिन
अंगारे,
अब तुम्हीं बोलो कि कोई ज़िंदगी कैसे गुज़ारे।
आदमी ऐसा नहीं है आज कोई,
साँस हो जिसने न पानी में भिगोई,
दर्द सबके पाँव में रहने लगा है,
ख़ास दुश्मन, गाँव में रहने लगा है,
द्वार से आँगन अलहदा हो रहे हैं,
चढ़ गया है दिन मगर सब सो रहे हैं,
अब तुम्हीं बोलो कि फिर आवाज़
पहली कौन मारे,
कौन इस वातावरण की बंद पलकों को उघारे।
बेवजह सब लोग भागे जा रहे हैं
देखने में खूब आगे जा रहे हैं,
किंतु मैले हैं सभी अंतःकरण से,
मूलतः बदले हुए हैं आचरण से,
रह गए हैं बात वाले लोग थोड़े
और अब तूफ़ान का मुँह कौन मोड़े,
नाव डाँवाडोल है ऐसी कि कोई
क्या उबारे,
जब डुबाने पर तुले ही हो किनारे पर, किनारे।
है अनादर की अवस्था में पसीना,
इसलिए गढ़ता नहीं कोई नगीना,
जान तो है एक उस पर लाख ग़म है,
इसलिए किस्में बहुत हैं, नाम कम हैं,
एक उत्तर के लिए हल हो रहे हैं
ढेर सारे,
और जिनके पास हल हैं, बंद हैं उनके किवारे।
१७ अगस्त २००९ |